पिछले महीने प्रसिद्ध लेखक और पत्रकार खुशवंत सिंह ९९ वर्ष की आयु में दुनिया छोड़ गए। उन्होंने एक लम्बी और कई मानों में संपूर्ण ज़िन्दगी जी। इस लेख को मैं इसके शीर्षक के सन्दर्भ तक सीमित रखूँगा। दरअसल कुछ लोगों ने हाल ही में खुशवंत सिंह पर फेसबुक में चर्चा के दौरान यह आरोप लगाया था कि खुशवंत सिंह के पिता ने भगत सिंह के खिलाफ ब्रिटिश सरकार का साथ दिया था. मैं यहाँ पर खुशवंत सिंह की जीवनी (Truth, love & a little malice) के एक अंश का हिंदी सार प्रस्तुत कर रहा हूँ। यह अंश जीवनी के तीसरे अध्याय (College Years in Delhi & Lahore) में से लिया गया है। निम्नलिखित सार को पढ़िए और फैसला कीजिये कि भगत सिंह से संम्बन्धित आरोप कितना सही है:
खुशवंत सिंह दिल्ली के St Stephen’s College में दुसरे वर्ष के छात्र थे जब भगत सिंह, राज गुरु और सुखदेव ने फांसी के तख्ते पर शहादत पाई. उनकी फांसी के विरोध में पुरे देश में स्कूल और कॉलेज बन्ध रखे गए. मगर St Stephen’s खुला था. उस दिन कॉलेज में सुबह की प्रार्थना के बाद खुशवंत और उनके एक साथी विद्यार्थी ने "भगत सिंह जिंदाबाद" का नारा लगाया और कॉलेज के flagmast पर तिरंगा फेहराया. इसके बाद खुशवंत और उनके साथी को कॉलेज के कार्यवाहक प्रिंसिपल ने जवाबतलब किया. उनको डांटा गया और यह चेतावनी दी गयी कि अगर दोबारा ऐसी हरकत की तो कॉलेज से निष्कासित कर दिए जायोगे. खुशवंत ने वादा किया कि वह दोबारा से ऐसा नहीं करंगे परन्तु उन्होंने प्रिंसिपल से यह आग्रह किया कि इस घटना के बारे में उनके पिता को न बताया जाये.
खुशवंत अपनी किशोरावस्था से जुडी एक दूसरी घटना में भी भगत सिंह का उल्लेख करते हैं. उन दिनों वह अपने अंकल-औंटी के साथ शिमला में छुट्टियाँ बिता रहे थे. उनके अंकल पंजाब विधान सभा (अंग्रेजो के ज़माने में) के सदस्य थे और मंत्री पद पाने को इच्छुक थे. वह अक्सर governor और सत्तासीन दुसरे महत्वपूर्ण लोगों के सामने अपनी मंत्री पद की दावेदारी पेश करते रहते थे. खुशवंत के अनुसार उनके अंकल अपने समय के ablest Sikh politician थे. उस ज़माने में पंजाब की राजनीती पर जाट समुदाय का गहरा प्रभाव था. चूँकि अंकल एक Jat agriculturalist नहीं थे, इस लिए वह राजनीति में ऊँचे पद नहीं हासिल कर पाए. पंजाब सरकार में केवल एक हिन्दू मंत्री को छोड़ कर बाकी सब मंत्री जाट थे. सिख मंत्री थे सर सुंदर सिंह मजीठिया -- a Jat with aristocratic pretensions.
एक दिन अंकल ने शिमला के नामी होटल Davico’s में एक चाय पार्टी का आयोजन किया. शिमला की elite society के ३००-४०० लोग, जिनमे पंजाब सरकार के मंत्री भी शामिल थे, इस पार्टी में आये. उन दिनों खुशवंत को एक एल्बम में मशहूर हस्तियों के हस्ताक्षर करवाने का शौक था. वह इस एल्बम में पंडित नेहरु और सरोजिनी नायडू के हस्ताक्षर ले चुके थे. वह भगत सिंह के हस्ताक्षर नहीं करवा सके थे, इसलिए उन्होंने एल्बम में भगत सिंह का फोटो चिपकाया हुआ था. उस चाय पार्टी में भी खुशवंत उपस्थित elite लोगों से उनके हस्ताक्षर करवा रहे थे. सबसे अंत में वह पंजाब सरकार के मंत्री सर सुंदर सिंह मजीठिया के पास गए. मजीठिया ने एल्बम के पन्ने पलटना शुरू कर दिया यह देखने के लिए कि किन-किन हस्तियों ने उसमे हस्ताक्षर किये हैं. जब मजीठिया ने भगत सिंह का फोटो देखा, तो उन्होने खुशवंत से गुस्से से पुछा, "तुमने इसका फोटो क्यों लगाया है." खुशवंत का जवाब था, "क्योंकि वह मेरा हीरो है." मजीठिया ने उपहास करते हुए कहा, "वह हीरो नहीं काफिर है." (काफिर इसलिए कहा क्योंकि भगत सिंह ने सिख धरम की परंपरा के खिलाफ अपने बाल और दाढ़ी कटवा ली थी.)
इसके बाद मजीठिया ने चिल्लाते हुए कहा, “इस काफिर की फोटो वाली एल्बम में मैं हस्ताक्षर नहीं करूंगा," और एल्बम को फ़ेंक दिया. उनके इस व्यवहार ने खुशवंत को हिला कर रख दिया और वह रोने लगे. इस पर खुशवंत के पिता के ख़ास दोस्त सेवा सिंह और उनकी बीवी ने मजीठिया को आड़े हाथों लिया. उन्होंने चिल्लाते हुए मजीठिया को कहा: "How dare you treat this boy in this way? He has every right to admire Bhagat Singh. We all do." इसके बाद मजीठिया पैर पटकता हुआ वहां से चला गया.