Thursday, April 10, 2014

खुशवंत सिंह के परिवार ने भगत सिंह को किस दृष्टि से देखा?

पिछले महीने प्रसिद्ध लेखक और पत्रकार खुशवंत सिंह ९९ वर्ष की आयु में दुनिया छोड़ गए। उन्होंने एक लम्बी और कई मानों में संपूर्ण ज़िन्दगी जी। इस लेख को मैं इसके शीर्षक के सन्दर्भ तक सीमित रखूँगा। दरअसल कुछ लोगों ने हाल ही में खुशवंत सिंह पर फेसबुक में चर्चा के दौरान यह आरोप लगाया था कि खुशवंत सिंह के पिता ने भगत सिंह के खिलाफ ब्रिटिश सरकार का साथ दिया था. मैं यहाँ पर खुशवंत सिंह की जीवनी (Truth, love & a little malice) के एक अंश का हिंदी सार प्रस्तुत कर रहा हूँ। यह अंश जीवनी के तीसरे अध्याय (College Years in Delhi & Lahore) में से लिया गया है। निम्नलिखित सार को पढ़िए और फैसला कीजिये कि भगत सिंह से संम्बन्धित आरोप कितना सही है:

खुशवंत सिंह दिल्ली के St Stephen’s College में दुसरे वर्ष के छात्र थे जब भगत सिंह, राज गुरु और सुखदेव ने फांसी के तख्ते पर शहादत पाई. उनकी फांसी के विरोध में पुरे देश में स्कूल और कॉलेज बन्ध रखे गए. मगर St Stephen’s खुला था. उस दिन कॉलेज में सुबह की प्रार्थना के बाद खुशवंत और उनके एक साथी विद्यार्थी ने "भगत सिंह जिंदाबाद" का नारा लगाया और कॉलेज के flagmast पर तिरंगा फेहराया. इसके बाद खुशवंत और उनके साथी को कॉलेज के कार्यवाहक प्रिंसिपल ने जवाबतलब किया. उनको डांटा गया और यह चेतावनी दी गयी कि अगर दोबारा ऐसी हरकत की तो कॉलेज से निष्कासित कर दिए जायोगे. खुशवंत ने वादा किया कि वह दोबारा से ऐसा नहीं करंगे परन्तु उन्होंने प्रिंसिपल से यह आग्रह किया कि इस घटना के बारे में उनके पिता को न बताया जाये.

खुशवंत अपनी किशोरावस्था से जुडी एक दूसरी घटना में भी भगत सिंह का उल्लेख करते हैं. उन दिनों वह अपने अंकल-औंटी के साथ शिमला में छुट्टियाँ बिता रहे थे. उनके अंकल पंजाब विधान सभा (अंग्रेजो के ज़माने में) के सदस्य थे और मंत्री पद पाने को इच्छुक थे. वह अक्सर governor और सत्तासीन दुसरे महत्वपूर्ण लोगों के सामने अपनी मंत्री पद की दावेदारी पेश करते रहते थे. खुशवंत के अनुसार उनके अंकल अपने समय के ablest Sikh politician थे. उस ज़माने में पंजाब की राजनीती पर जाट समुदाय का गहरा प्रभाव था. चूँकि अंकल एक Jat agriculturalist नहीं थे, इस लिए वह राजनीति में ऊँचे पद नहीं हासिल कर पाए. पंजाब सरकार में केवल एक हिन्दू मंत्री को छोड़ कर बाकी सब मंत्री जाट थे. सिख मंत्री थे सर सुंदर सिंह मजीठिया -- a Jat with aristocratic pretensions.

एक दिन अंकल ने शिमला के नामी होटल Davico’s में एक चाय पार्टी का आयोजन किया. शिमला की elite society के ३००-४०० लोग, जिनमे पंजाब सरकार के मंत्री भी शामिल थे, इस पार्टी में आये. उन दिनों खुशवंत को एक एल्बम में मशहूर हस्तियों के हस्ताक्षर करवाने का शौक था. वह इस एल्बम में पंडित नेहरु और सरोजिनी नायडू के हस्ताक्षर ले चुके थे. वह भगत सिंह के हस्ताक्षर नहीं करवा सके थे, इसलिए उन्होंने एल्बम में भगत सिंह का फोटो चिपकाया हुआ था. उस चाय पार्टी में भी खुशवंत उपस्थित elite लोगों से उनके हस्ताक्षर करवा रहे थे. सबसे अंत में वह पंजाब सरकार के मंत्री सर सुंदर सिंह मजीठिया के पास गए. मजीठिया ने एल्बम के पन्ने पलटना शुरू कर दिया यह देखने के लिए कि किन-किन हस्तियों ने उसमे हस्ताक्षर किये हैं. जब मजीठिया ने भगत सिंह का फोटो देखा, तो उन्होने खुशवंत से गुस्से से पुछा, "तुमने इसका फोटो क्यों लगाया है." खुशवंत का जवाब था, "क्योंकि वह मेरा हीरो है." मजीठिया ने उपहास करते हुए कहा, "वह हीरो नहीं काफिर है." (काफिर इसलिए कहा क्योंकि भगत सिंह ने सिख धरम की परंपरा के खिलाफ अपने बाल और दाढ़ी कटवा ली थी.)

इसके बाद मजीठिया ने चिल्लाते हुए कहा, “इस काफिर की फोटो वाली एल्बम में मैं हस्ताक्षर नहीं करूंगा," और एल्बम को फ़ेंक दिया. उनके इस व्यवहार ने खुशवंत को हिला कर रख दिया और वह रोने लगे. इस पर खुशवंत के पिता के ख़ास दोस्त सेवा सिंह और उनकी बीवी ने मजीठिया को आड़े हाथों लिया. उन्होंने चिल्लाते हुए मजीठिया को कहा: "How dare you treat this boy in this way? He has every right to admire Bhagat Singh. We all do." इसके बाद मजीठिया पैर पटकता हुआ वहां से चला गया.

खुशवंत आगे लिखते हैं कि इस घटना ने पार्टी किरकिरी कर दी थी और उनके अंकल-औंटी बहुत जायदा upset हो गए थे. खुशवंत मजीठिया को उनके अशिष्ट व्यवहार के लिए कभी माफ़ नहीं कर सके. न ही उन्होंने भविष्य में मजीठिया के बेटों और पौत्रों के दोस्ती के आग्रह स्वीकार किये.

Sunday, January 26, 2014

आज Sir John Strachey अपनी कब्र में करवट ले रहे होंगे।

Strachey के अपनी कब्र में करवट लेने का कारण१३६ साल पहले Strachey ने हिंदुस्तान के लोगों और तत्कालीन हिंदुस्तानी शासकों कि अपार भिन्नताओं को  देखते हुए यह कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि भारत कभी European modern nation की तरह एक राष्ट्र बन सकता है और वह भी लोकतान्त्रिक राष्ट्र!!!

Strachey १९वीं शताब्दी के अंत में भारत की ब्रिटिश सरकार में भिन्न-भिन्न पदों पर रहे और वह Governor-General कि Council के सदस्य भी बन गए। उन्होंने १८८८ में यानि कि १३६ साल पहले, कैंब्रिज में भारत पर अपने अनुभवों पर आधारित कई लेक्चर दिए। इन लेक्चरस को एक किताब जिसका नाम था "India" के रूप में प्रकाशित भी किया गया। यह किताब उन अँग्रेज युवाओं के लिए काफी शिक्षाप्रद थी जो भारत में ब्रिटिश सरकार के अंतर्गत नौकरी करना चाहते थे।

प्रसिद्ध इतिहासकार रामचंद्र गुहा अपनी किताब 'India after Gandhi' मैं लिखते हैं:

In Strachey's view, the differences between the countries of Europe were much smaller than those between the 'countries' of India. 'Scotland is more like Spain than Bengal is like the Punjab.'... 'the first and most essential thing to learn about india (is) — that there is not, and never was an India, or even any country of India possessing, according to any European ideas, any sort of unity, physical, political, social or religious.'

आज Strachey के आकलन को सिरे से नकारते हुए हिंदुस्तान ने एक मजबूत लोकतंत्र बन कर विशव के सामने अद्वित्य उदहारण प्रस्तुत किया है। इसके लिए आम आदमी और सेना का योगदान बहुत महत्वपूर्ण रहा है। हालांकि आम आदमी कभी-कभी कुछ नेताओं की स्वार्थ की राजनीती को नहीं पहचान पाया, मगर उसने ज़्यादातर शांतिपूर्वक तरीके से सरकारों को बदला है। सेना ने भी कभी-कभी देश में उत्तपन राजनितिक अस्थिरता को राजनेताओं को ही सुलझाने दिया और वह अपनी barracks से निकल कर सत्ता के गलियारों में दाखिल नहीं हुई।


LONG LIVE THE INDIA OF VIBRANT DEMOCRACY, PUBLIC ACCOUNTABILITY AND INCLUSIVE GROWTH!!!

आज स्वपाल क़ानून बनाने का दिन है!!!

सभी हिन्दुस्तानियों को ६५वें गणतंत्र दिवस की बहुत-बहुत बधाई एवं ढेरों शुभकामनायें!!!

यह ख़ुशी की बात है कि भारत के गणतंत्र बनने के ६४ वर्ष बाद और प्रथम लोकपाल बिल के संसद में प्रस्तुत किये जाने के ४४ साल बाद, आज नेता-बाबू-पुलिस पर अंकुश लगाने के लिए हमारे सविधान में लोकपाल template जुड़ चुकी है। भले ही अरविन्द केजरीवाल उससे Jokepal कहें, परन्तु लोकपाल template को upgrade करके भविष्य में मनचाहा रूप दिया जा सकता है।

कानून के जरिय तो हमने नेता-बाबू-पुलिस पर अंकुश लगाने का लोकपाल कानून का जुगाड़ कर लिया है। इसको मैंने जुगाड़ इसलिए कहा है क्योंकि यह एक फलदायी प्रयास तभी साबित होगा जब प्रत्येक हिंदुस्तानी अपना-अपना स्वपाल पारित करे और उसे ईमानदारी से लागू करे। क्योंकि अगर हम अपने सरकारी संपर्क में पिछले दरवाज़े का इस्तेमाल करेंगे और अपने सामाजिक व्यवहार में अनुशासन पर नहीं चलेंगे तो सख्त से सख्त लोकपाल कानून भी नेता-बाबू-पुलिस पर इच्छित अंकुश नहीं लगा पायेगा।

तो आप कब स्वपाल कानून पास करके उसे ईमानदारी से लागू करने जा रहें है???

Friday, January 24, 2014

कांग्रेस की ज़मीन और वादे मोदी के!!!

एक सवालक्या बांग्लादेश या भूटान का कोई PM उम्मीद्वार bullet trains, smart cities, प्रतिभा विकास, IITs, IIMs, AIIMS, technology development और उन्नत कृषि के वैसे वादे कर सकता है, जैसे नरेंद्र मोदी ने गत रविवार को किये? मुझे पता है आपका उत्तर होगा नहीं? कारण भी आपको पता है कि इन देशों के पास ये सब काम करने के लिए वह आधार ही नहीं है जो आजादी के बाद भारत में कृषि, औद्योगिक, तकनिकी एवं मानव संसाधन के विकास से बना। यानि कि मोदी, जो भारत को कांग्रेस से मुक्ति दिलाना चाहते हैं, को ये सब वादे करने के लिए ज़मीन कांग्रेस ने ही तैयार करके दी है।

Technology development प्रोत्साहन देते हुए राजीव गांधी ने २९ साल पहले भारत में computer के इस्तेमाल की बड़े पैमाने पर शुरुआत करवाई। और उन्होंने सैम पित्रोदा की अध्यक्षता में Technology Mission की स्थापना भी की। पित्रोदा को भारत कि संचार क्रांति का जनक भी कह सकते हैं। वह अपने काम के लिए भारत सरकार से राजीव के समय में वेतन लेते थे, आज लेते हैं। राजीव के शासन की Technology development से जुडी एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि उन दिनों TV प्रसारण को देश के कोने-कोने में पहुँचाने के लिए लगभग रोज़ ही एक नया TV transmitter कहीं कहीं शुरू होता था।

Talent यानि प्रतिभा विकास को राजीव सरकार ने बढ़ावा देने के किये १९८६ की शिक्षा निति के तहत हर ज़िले में जवाहर प्रतिभा विद्यालयं स्थापित करने का निर्णय लिया। आज देश में लगभग ५९३ जवाहर प्रतिभा विद्यालयं हैं जहाँ प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को अपनी प्रतिभा विक्सित करने के लिए एक खास माहोल मिलता है।

अंत में, मैं १९८५ में computer के इस्तेमाल को लेकर देश में क्या माहोल था उस पर २९ साल पहले लिखे हुए अपने ही एक term paper (100 pages) के निम्नलिखित अंशों द्वारा आज के नौजवानों को अवगत करना चाहता हूँ। Term paper का विषय था — Computer's Applications in Press Industry, जो कि मैंने अपने YMCA (New Delhi) से Journalism Diploma करते हुए लिखा था।

२९ साल पहले कुछ माहोल ऐसा था — These days there is so much talk about the 21st century and computers in our country. Whether a planner, policy-maker, or a man in the street — all seem to be greatly impressed by the incredible accomplishments of that small piece of electronic circuitry called 'micro-chip'. The new-look Congress Government's main thrust is also on advanced technology. With the aim of taking the country into the 21st century as a developed nation, the new Government is encouraging application of computers on a large scale in all walks of day-to-day life.

...The hesitant acceptance of new technology by Indian workforce is mainly because of two reasons. One is fear of retrenchment and other the possible health hazards of new technology...

...Definitely the use of computers will create new job opportunities, especially in the maintenance and manufacturing of computers. But it will take time...

Term paper के उपरोक्त अंशों में मैंने एक भविष्यवक्ता की तरह जो computer-based industry की बात कही थी वह सच हो चुकी है। उस समय मुझे computer में software के उपयोगिता का पता नहीं था इसलिए मैं software-based industry के विकास की सम्भावना से अनजान था।

इस term paper मैं मैंने Patriot newspaper के production में computer के इस्तेमाल से आये बदलावों पर रौशनी डाली थी। Patriot newspaper से स्वन्तरता सेनानी अरुणा आसफ अली जुडी हुई थी और इस अखबार कि computer प्रणाली का उदघाटन तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने फरवरी १९८४ को किया था। यानि कि computer का इस्तेमाल इंदिरा गांधी के शासन काल में शुरु हो चूका था परन्तु इस इस्तेमाल का बड़े पैमाने पर विस्तार राजीव के शासन काल में हुआ। राजीव के शासन काल में ही अमेरिका, भारत को super computer देने पर राजी हुआ था

Saturday, January 18, 2014

Who says Rahul is a 'Pappu'?

Rahul's emergence as a confident warrior, I am sure, must have surprised many Congress-baiters. Yesterday (17.01.2014) Rahul's 41-minute speech at the All India Congress Committee (AICC) session was a surprising anti-thesis of his 'Pappu' image built by the Saffron social media army. In his vociferously delivered speech Rahul said all the right things about fighting corruption, about encouraging the demoralized Congress 'karyakarta', about equality of women in important affairs of the nation, and about helping poor people lead a better life. He also cracked good jokes like the opposition's good marketing skills in selling combs and giving hair-cuts (exaggerated promises) to the bald people.

Through his speech Rahul has successfully presented himself to the people not as Modi's 'shehzada' but as someone who is tuned in to the India reality. However, Congress supporters wanted Rahul to get into this 'avatar' long ago to blunt the Modi's tireless and many times unfounded attack on Nehru and the Congress rule. Most people believe that now it's too late for the Congress to come back into the reckoning at the hustings. But I believe Rahul can surely minimize Congress losses if he succeeds in convincing people, particularly the youth, that the Congress is not all about the Gandhi dynasty. In his speech, he also talked about transforming the Congress into a 21st century outfit. Already, at Rahul's initiative, internal polls have been held in NSUI and the Youth Congress to democratically elect their office-bearers.

For Rahul, it's really an uphill task to convince people about UPA's commitment to fight corruption when over the past three years, media and the opposition have successfully drilled into people's mind that the UPA government is highly corrupt. Let's see how his sister Priyanka, highly efficient technology man Sam Pitroda and other Congress stalwarts help Rahul in this task. One essential caution for all Congress media managers is to don't shoot from the hip at Modi and other Saffron leaders. They must not do a Mani Shanker Aiyar in mocking at Modi's 'chaiwala'  background.

Wednesday, December 4, 2013

Today, would Delhi go by opinion polls or the AAP undercurrent would turn into a tide? I wish the latter!

So, today Delhiites are voting their new government for next five years. A POLL OF ALL OPINION POLLS, which were conducted between Aug 2 and Dec 1, predicts a hung Assembly with seats position as follows: Congress 26, BJP 30, AAP 12 and others 2.

I congratulate AAP for its sincere efforts in making corruption and clean governance important poll issues and emerging as a strong contender to form government in Delhi. MY SUPPORT IS FOR AAP, which is going to make a historic, countable entry into Delhi Assembly.

AAP has for the first time in Delhi’s electoral history has turned the Capital’s bipolar polity into a three-some phenomenon. Though both AAP and BJP on the basis their own opinion polls/ assessment claim huge victories, no independent opinion poll has confirmed their claims. Here exceptions are the two opinion polls of India Today which have predicted BJP victory.

However, at the ground level and while talking to middle class Delhiites I have noticed an undercurrent in AAP’s favour . If this undercurrent sustains till their pressing the EVM button, then ALL INDEPENDENT OPINION POLLS ARE GOING TO FALL FLAT ON THEIR FACE. And, this would be the first time that opinions polls would be so off the mark.

I have been following the opinion polls since the 1984 Lok Sabha polls. That year for the first time in India, the India Today group had conducted an opinion poll and predicted a huge 400 plus seat victory for the Rajiv Gandhi-led Congress. The opinion poll proved right as Indians in sympathy to Indira Gandhi’s assassination had voted overwhelmingly for Rajiv and Congress.

Today evening or tomorrow evening we will move over to the EXIT POLLS, which would be telecast by almost all news channels. These polls will give a more better idea of the expected poll results as these are conducted on the people who have already voted.

I end with good wishes for TEAM AAP and a request that if you come to power then please don’t go for populist measures and enable Delhiites to have realistic expectations from the government and, more importantly, also discharge their responsibilities/duties towards Delhi and the nation.

Thursday, November 28, 2013

परेशानियों से मुक्ति का सरल उपाय


इस कविता कि खुराक दिन में तीन बार अच्छे मूड में चाय के सात लेने से ज़िन्दगी कि परेशानियां कभी नहीं सताएंगी।  ये कविता मुझे एक फेसबुक के डाक्टर ने दी है:  


जो पाया कभी सोचा नहीं,
जो सोचा कभी मिला नहीं,
जो मिला रास आया नहीं,
जो खोया वो याद आता है
पर, जो पाया संभाला जाता नहीं,
क्यों अजीब सी पहेली है ज़िन्दगी
जिसको कोई सुलझा पाता नहीं.

जीवन में कभी समझौता करना पड़े तो कोई बड़ी बात
नहीं है,
क्योंकि झुकता वही है जिसमें जान होती है,
अकड़ तो मुरदे की पहचान होती है।

ज़िन्दगी जीने के दो तरीके होते है!
पहला: जो पसंद है उसे हासिल करना सीख लो!
दूसरा: जो हासिल है उसे पसंद करना सीख लो!

जिंदगी जीना आसान नहीं होता; 
बिना संघर्ष कोई महान नहीं होता; 
जब तक न पड़े हथोड़े की चोट,
पत्थर भी भगवान नहीं होता।

जिंदगी बहुत कुछ सिखाती है;
कभी हंसती है तो कभी रुलाती है; 

पर जो हर हाल में खुश रहते हैं, 
जिंदगी उनके आगे सर झुकाती है।

चेहरे की हंसी से हर गम चुराओ; 
बहुत कुछ बोलो पर कुछ ना छुपाओ;
खुद ना रूठो कभी, पर सबको मनाओ;
राज़ है ये जिंदगी का बस जीते चले जाओ।