शायद आपको याद हो नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को हाल में ही इस बात के लिए लताड़ा था कि उन्होंने अमेरिका जा कर ओबामा के सामने देश कि गरीबी का रोना रोया है। यानि कि गरीबी कि मार्केटिंग की है। परन्तु मोदी खुद भी अपने ज़्यादातर भाषणों में अपने भूतकाल के चायवाले बैकग्राउंड की चर्चा करना नहीं भूलते। क्या इसे किसी तरह की मार्केटिंग कहा जा सकता है?
खैर मोदी के भाषणों का असर चायवालों कि बिरादरी पर हो गया है और उन्होंने एक नयी पार्टी, चायवाला पार्टी, बना ली है। इस पार्टी के अद्यक्ष रामू भी ४ दिसंबर को होने वाले दिल्ली विधान सभा के चुनावों में शीला दीक्षित, हर्षवर्धन एवं अरविन्द केजरीवाल की तरह मुख्यमंत्री के पद की दौड़ में हैं। यह बात मुझे तब पता चली जब मैंने दिल्ली विश्विद्यालय के कैंपस में दो छात्रों को बात करते सुना। ये छात्र कुछ इस तरह बात कर रहे थे:
राहुल: चल नरेंद्र यार रामू की चाय पीने चलते हैं।
नरेंद्र: रामू की चाय अब नहीं मिलेगी।
राहुल: क्यों?
नरेंद्र: जब से रामू ने सुना है की मोदी जी कभी चाय बेचा करते थे तब से उसने अपनी दुकान बंद कर दी है। और एक नयी पार्टी, चायवाला पार्टी, बना ली है।
राहुल: अरे उसे तो बहुत समर्थन मिल सकता है। दिल्ली में जगह-जगह तो चायवाले हैं और लाखों लोग उनसे चाय पीते हैं।
नरेंद्र: यार, जिस तरह से रामू भाषण देता फिर रहा है और लोगों को आकर्षित कर रहा है, वह मुख्यमंत्री बन सकता है।
राहुल: क्या कहता है भाषण में?
नरेंद्र: कल कमला मार्केट में अच्छी-खासी भीड़ के सामने आग्रहपूर्वक कह रहा था: "भाइयों और बहनों, मैं भी चाय बेचता हूँ मुझे देश की न सही कम से कम दिल्ली की सेवा करने का मोका दीजिये।"
राहुल: क्या रामू ने कोई चुनावी वायदे किये?
नरेंद्र: हाँ कह रहा था कि अगर मैं दिल्ली का मुख्यमंत्री बना तो हर दिल्ली वाले को रोज़ दो चाय मुफ्त मिलेगी। वह भी पानी की नहीं, दूध में पती वाली चाय मलाई मार के।
राहुल: उसने यह नहीं कहा कि साथ में फेन और मट्ठी भी देगा?
नरेंद्र: हाँ यही बात एक बन्दे ने भी रामू से पूछी थी।
राहुल: तो रामू क्या बोला?
नरेंद्र: रामू बोला चाय कि तो मेरी पक्की गारंटी है। फेन-मट्ठी के लिए केंद्रीय सरकार से पूछना पड़ेगा।
राहुल: चलो यार, रामू को जिताओ। दूध पती वाली चाय मिलेगी मलाई मार के।
नरेंद्र: रामू ने यह भी कहा कि आप प्लास्टिक के पिद्दी-पिद्दी कप में चाय पीना भूल जाओगे। स्टील का बड़ा गिलास मिलेगा आधा भर के। इस पर एक बन्दे ने कहा, "आप फेन-मट्ठी नहीं देंगे, कम से कम चाय तो गिलास भर के दीजिये।"
राहुल: तो रामू क्या बोला?
नरेंद्र: वह बोला इसके लिए मुझे केंद्रीय सरकार से पूछना पड़ेगा। देखिये आप मेरी मजबूरी समझिये। में केंद्रीय सरकार से सम्बन्ध ख़राब नहीं कर सकता। आखिर मुझे भी पांच साल सरकार चलानी है।
राहुल: यार बात तो समझदारी की कर रहा है।
नरेंद्र: अब रामू की बात बहुत हुई। चल जल्दी से माल रोड चलते हैं। आज चाय सैंडविच खिलाने की तेरी बारी है।
राहुल: मैं कहाँ मना कर रहा हूँ। मेरा मन तो रामू की दूध पती मलाई वाली चाय पीने का कर रहा है।
नरेंद्र: रामू की चाय जब मिलेगी तब मिलेगी, आज तो तू जेब ढीली कर.
राहुल: चल तू भी पैसे खर्च करवा के ही मानेगा।
तो इस तरह नरेंद्र और राहुल एक दुसरे के कंधे पर हाथ रखे हुए माल रोड कि और बढ़ चलते हैं।
अगर आप भी रामू की दूध पती मलाई वाली चाय पीना चाह्ते हैं तो ४ दिसंबर रामू को वोट देना नो भूलें।
खैर मोदी के भाषणों का असर चायवालों कि बिरादरी पर हो गया है और उन्होंने एक नयी पार्टी, चायवाला पार्टी, बना ली है। इस पार्टी के अद्यक्ष रामू भी ४ दिसंबर को होने वाले दिल्ली विधान सभा के चुनावों में शीला दीक्षित, हर्षवर्धन एवं अरविन्द केजरीवाल की तरह मुख्यमंत्री के पद की दौड़ में हैं। यह बात मुझे तब पता चली जब मैंने दिल्ली विश्विद्यालय के कैंपस में दो छात्रों को बात करते सुना। ये छात्र कुछ इस तरह बात कर रहे थे:
राहुल: चल नरेंद्र यार रामू की चाय पीने चलते हैं।
नरेंद्र: रामू की चाय अब नहीं मिलेगी।
राहुल: क्यों?
नरेंद्र: जब से रामू ने सुना है की मोदी जी कभी चाय बेचा करते थे तब से उसने अपनी दुकान बंद कर दी है। और एक नयी पार्टी, चायवाला पार्टी, बना ली है।
राहुल: अरे उसे तो बहुत समर्थन मिल सकता है। दिल्ली में जगह-जगह तो चायवाले हैं और लाखों लोग उनसे चाय पीते हैं।
नरेंद्र: यार, जिस तरह से रामू भाषण देता फिर रहा है और लोगों को आकर्षित कर रहा है, वह मुख्यमंत्री बन सकता है।
राहुल: क्या कहता है भाषण में?
नरेंद्र: कल कमला मार्केट में अच्छी-खासी भीड़ के सामने आग्रहपूर्वक कह रहा था: "भाइयों और बहनों, मैं भी चाय बेचता हूँ मुझे देश की न सही कम से कम दिल्ली की सेवा करने का मोका दीजिये।"
राहुल: क्या रामू ने कोई चुनावी वायदे किये?
नरेंद्र: हाँ कह रहा था कि अगर मैं दिल्ली का मुख्यमंत्री बना तो हर दिल्ली वाले को रोज़ दो चाय मुफ्त मिलेगी। वह भी पानी की नहीं, दूध में पती वाली चाय मलाई मार के।
राहुल: उसने यह नहीं कहा कि साथ में फेन और मट्ठी भी देगा?
नरेंद्र: हाँ यही बात एक बन्दे ने भी रामू से पूछी थी।
राहुल: तो रामू क्या बोला?
नरेंद्र: रामू बोला चाय कि तो मेरी पक्की गारंटी है। फेन-मट्ठी के लिए केंद्रीय सरकार से पूछना पड़ेगा।
राहुल: चलो यार, रामू को जिताओ। दूध पती वाली चाय मिलेगी मलाई मार के।
नरेंद्र: रामू ने यह भी कहा कि आप प्लास्टिक के पिद्दी-पिद्दी कप में चाय पीना भूल जाओगे। स्टील का बड़ा गिलास मिलेगा आधा भर के। इस पर एक बन्दे ने कहा, "आप फेन-मट्ठी नहीं देंगे, कम से कम चाय तो गिलास भर के दीजिये।"
राहुल: तो रामू क्या बोला?
नरेंद्र: वह बोला इसके लिए मुझे केंद्रीय सरकार से पूछना पड़ेगा। देखिये आप मेरी मजबूरी समझिये। में केंद्रीय सरकार से सम्बन्ध ख़राब नहीं कर सकता। आखिर मुझे भी पांच साल सरकार चलानी है।
राहुल: यार बात तो समझदारी की कर रहा है।
नरेंद्र: अब रामू की बात बहुत हुई। चल जल्दी से माल रोड चलते हैं। आज चाय सैंडविच खिलाने की तेरी बारी है।
राहुल: मैं कहाँ मना कर रहा हूँ। मेरा मन तो रामू की दूध पती मलाई वाली चाय पीने का कर रहा है।
नरेंद्र: रामू की चाय जब मिलेगी तब मिलेगी, आज तो तू जेब ढीली कर.
राहुल: चल तू भी पैसे खर्च करवा के ही मानेगा।
तो इस तरह नरेंद्र और राहुल एक दुसरे के कंधे पर हाथ रखे हुए माल रोड कि और बढ़ चलते हैं।
अगर आप भी रामू की दूध पती मलाई वाली चाय पीना चाह्ते हैं तो ४ दिसंबर रामू को वोट देना नो भूलें।
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